Tuesday 9 July 2013

जूनियर भारतीय महिला हॉकी टीम में सीनियर खिलाड़ी

सर, जर्मनी में कौन सा जन्म प्रमाण-पत्र लेकर चलना होगा, जो हालैण्ड ले गये थे वो या जो मई में आयरलैण्ड ले गये थे वो? यह संवाद किसी फिल्म का नहीं बल्कि भारतीय महिला हॉकी की हकीकत का वह कड़वा सच है जिसके चलते अब प्रतिभाएं इस खेल से पलायन को मजबूर हैं। उम्र के इस फरेब में जहां प्रतिभाशाली सब जूनियर और जूनियर खिलाड़ियों का दम घुट रहा है वहीं हॉकी इण्डिया के कर्ताधर्ता व गोरे हमारे पुश्तैनी खेल का मटियामेट कर रहे हैं। जिस हॉकी को स्वर्णिम दौर की तरफ लाने की हॉकी इण्डिया वकालत कर रही है उसका बुरा हाल है। जर्मनी में 27 जुलाई से चार अगस्त तक खेली जाने वाली सातवीं जूनियर विश्व कप हॉकी प्रतियोगिता के लिए जिस टीम का चयन किया गया है उसके 18 सदस्यीय दल में 15 सीनियर खिलाड़ी शामिल हैं। नियमत: जूनियर कैम्प से प्रतिभाशाली खिलाड़ियों का चयन किया जाना था पर उसके तीन खिलाड़ियों को ही टीम में जगह मिल पाई है। इन खिलाड़ियों में दो गोलकीपर सानरिक चानू व बिगन साय तथा फारवर्ड नवनीत कौर शामिल हैं। कहने को टीम चयन के लिए 27 जून को ट्रायल होनी थी पर हॉकी के हुक्मरानों ने खिलाड़ियों का मैदान में प्रदर्शन देखना वाजिब नहीं समझा। मुख्य प्रशिक्षक नील हावर्ड के बिना ही कमरे में बैठकर टीम का चयन फिजिकल ट्रेनर की सहमति से कर लिया गया।
   हॉकी इण्डिया की मति इस कदर मारी गई है कि जिन सीनियर खिलाड़ियों ने हालैण्ड में भारतीय हॉकी को शर्मसार किया उन्हीं को जर्मनी का टिकट दे दिया गया। हालैण्ड में हुई प्रतियोगिता की आठ टीमों में भारतीय टीम सातवें स्थान पर रही। वहां हमारी पलटन ने जहां सिर्फ पांच गोल किये वहीं प्रतिद्वन्द्वी टीमों ने उस पर 28 गोल ठोंक डाले। महिला हॉकी में चल रहे इस गड़बड़झाले पर जब पुष्प सवेरा ने कुछ खिलाड़ियों से बात की तो उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अच्छे खिलाड़ियों पर हमेशा अनफिट होने का लांछन लगा दिया जाता है। बकौल सीनियर टीम कप्तान रितु रानी की कही सच मानें तो हालैण्ड गई टीम में जहां सीनियर खिलाड़ियों से परहेज किया गया था वहीं जर्मनी में विश्व कप खेलने जा रही जूनियर टीम में सीनियर खिलाड़ियों को प्रवेश देकर प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के गाल पर तमाचा मारा गया है। उम्मीद थी कि हॉकी इण्डिया हालैण्ड में मिली शर्मनाक पराजय से सबक लेते हुए प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को मौका देगी पर अफसोस जर्मनी के लिए जो टीम चयन हुआ उसमें भी गोरों की मनमानी और बेईमानी जमकर परवान चढ़ी। इस टीम में खिलाड़ियों के उम्र फरेब की जांच हो तो गम्भीर अनियमितताएं सामने आ सकती हैं। कहने को हॉकी इण्डिया प्रतिवर्ष जवाबदेह लोगों की देखरेख में सब जूनियर, जूनियर और सीनियर नेशनल प्रतियोगिताएं करा रही है पर खिलाड़ियों का उम्र फरेब रोके नहीं रुक रहा। जर्मनी जा रही टीम की कप्तान पी. सुशीला चानू और वंदना कटारिया जहां 21 साल से अधिक हैं वहीं दूसरी सदस्यों पर नजर डालें तो वे भी दूध की धुली नहीं हैं। जानकर ताज्जुब होगा कि एक-एक महिला खिलाड़ी के पास कई-कई जन्म  प्रमाण पत्र हैं।
कहां गई रानी रामपाल?
बीते कई सालों से महिला हॉकी में रानी रामपाल की धूम रही है। उसे दुनिया का सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाशाली फारवर्ड खिलाड़ी माना जाता रहा पर वह रानी रामपाल न जाने कहां गुम हो गई? इस बाबत जब हॉकी जानकारों से पड़ताल की गई तो उन्होंने बताया कि अब वह रानी देवी के नाम से जूनियर टीम के साथ जा रही है। अब सवाल यह उठता है कि रानी रामपाल आखिर रानी देवी क्यों बनी? सच तो यह है कि शाहाबाद (हरियाणा) की यह छोरी भी उम्र फरेब का शिकार है। बीते पांच साल से भारतीय टीम से खेल रही रानी रामपाल अभी 19 साल की ही है।
महिला खिलाड़ियों की उम्र नहीं बढ़ती
मानो या न मानो भारत में महिला खिलाड़ियों की उम्र नहीं बढ़ती। यही वजह है कि जर्मनी जा रही जूनियर टीम में 15 सीनियर खिलाड़ियों ने प्रवेश पा लिया है और जूनियर खिलाड़ी मायूस हैं। जो भी हो इस गड़बड़झाले में कहीं जर्मनी में खलल न          पड़ जाये।
गोलकीपर
सानरिक चानू 02-01-1993
बिगन साय 07-05-1993
डिफेंडर्स
पिंकी देवी 23-12-1992
दीप ग्रेस इक्का 03-06-1993
नमिता टोप्पो 04-06-1995
मनजीत कौर 23-12-1995
एमएन पूनम्मा 25-10-1992
पी सुशीला चानू (कप्तान) 25-02-1992
मिडफील्डर
लिली चानू 03-06-1996
लिलिमा मिंज 10-04-1994
नवजोत कौर 07-03-1995
वंदना कटारिया 15-04-1992
रितुषा आर्य 23-03-1993
फारवर्ड
पूनम रानी 08-02-1993
रानी देवी (उप कप्तान) 04-12-1994
अनुपा बारला 06-05-1994
नवनीत कौर 26-01-1996

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