Friday, 17 July 2020

गुजरात की लेडी सिंघम सुनीता यादव


ये वर्दी तुम्हारे पिताजी की गुलामी के लिये नहीं पहनी है
ईमानदारी और फर्ज की ताकत के आगे सत्ता की चूलें भी हिल जाया करती हैं। गुजरात के सूरत में एक मामूली कांस्टेबल ने ‘कायदे-कानून के आगे हर कोई बराबर होता है’ कहकर न केवल मंत्री को खरी-खोटी सुनाई बल्कि कानून के उल्लंघन पर उनके पुत्र व उसके दोस्तों को गिरफ्तार भी करवाया। राजनीतिक दबाव में जब विभाग की तरफ से माफी मांगने को कहा गया और तबादला किया गया तो स्वाभिमान की रक्षा के लिये उसने नौकरी से इस्तीफा दे दिया।
पूरे मामले में जनता का समर्थन और सहानुभूति इस महिला कांस्टेबल सुनीता यादव को मिली। सोशल मीडिया में उसके पक्ष में मुहिम चली। मंत्री व उनके पुत्र और कांस्टेबल सुनीता के बीच बातचीत के ऑडियो-वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुए। खुद सुनीता ने भी सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म पर अपनी बात रखी। जन-दबाव के बाद गुजरात सरकार के स्वास्थ्य मंत्री किशोर कनाणी बचाव की मुद्रा में आ गये और बोले दोनों पक्षों को एक-दूसरे को समझना चाहिए।
दरअसल, सूरत के वारछा इलाके में रात को कर्फ्यू के दौरान सुनीता ने कुछ युवकों को बिना मास्क के घूमते पकड़ा। जिस पर युवकों ने मंत्री पुत्र प्रकाश कानाणी को बुला लिया। प्रकाश अपने पिता की विधायक की प्लेट लगी कार लेकर विवादित स्थल पर पहुंचा और युवकों को छोड़ने को कहा। उसकी बातचीत का वह ऑडियो वायरल हुआ, जिसमें वह कह रहा था कि हमारी इतनी ताकत है कि इसी जगह साल के 365 दिन तुम्हारी खड़े रहने की ड्यटी लगवा दूंगा।
मंत्री पुत्र की टिप्पणी से कांस्टेबल के स्वाभिमान को चोट लगी। उसने मंत्री पुत्र को सख्त लहजे में कहा कि ‘ये वर्दी तुम्हारे पिताजी की गुलामी के लिये नहीं पहनी है।’ अधिकारियों को सूचित किया। उसे कहा गया कि उसकी ड्यूटी इलाके की हीरा व टेक्सटाइल फैक्टरी न चलने देने की है, प्वाइंट पर किसी को रोकने की नहीं। आहत सुनीता ने मंत्री को भी फोन पर खरी खोटी सुनाई और पूछा कि जब आप गाड़ी में नहीं हैं तो आपका बेटा आपके नेम प्लेट वाली गाड़ी लेकर दबाव बनाने के लिए कैसे घूम रहा है। वह किस तरह कर्फ्यू के प्रोटोकॉल का उल्लंघन कर रहा है। आप ईमानदारी से काम कर रही पुलिस को न सिखाओ, अपने बिगड़ैल बेटे को कायदे-कानून सिखाओ। यह प्रकरण पुलिस व राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना रहा।
इसके बाद राजनीतिक दबाव के चलते पुलिस अधिकारियों के सुर बदलने से आहत सुनीता ने पुलिस कमिश्नर सूरत आफिस में अपना इस्तीफा दे दिया। जब सुनीता का स्थानांतरण पुलिस लाइन किया गया तो उसने इस बात का मुखर विरोध किया कि जब उसने नौकरी से इस्तीफा दे दिया है तो उसका तबादला क्यों किया जा रहा है। मंत्री द्वारा पुत्र के साथ दुर्व्यवहार करने के आरोप लगाने के बाद पुलिस द्वारा मामले की जांच की जा रही है।
घटनाक्रम के बाद सुनीता ने भी अपनी बात रखी ‘मेरा इस्तीफा स्वीकार करने के बाद मुझे छुट्टी पर भेजा जा रहा है। मेरा तबादला किया जा रहा है। तबादला होने का मतलब मेरी तौहीन होना है और मंत्री के बेटे के मन की होना है, जो मुझे मंजूर नहीं है।’ सुनीता के पक्ष में जब देशभर में ट्वीट ट्रेंड करने लगे तो उसने लिखा ‘मैं सरकार की नौकरी करती हूं। वे और लोग होंगे जो नेताओं और मंत्रियों की गुलामी करते हैं। मैंने अपने स्वाभिमान से समझौता करके नौकरी करना नहीं सीखा। हमने भारत माता की शपथ वर्दी के लिये ली है। वे लोग जो नेताओं व भ्रष्ट सिस्टम की गुलामी करते हैं, उन्हें अपनी वर्दी व स्वाभिमान से ज्यादा पैसा प्यारा है। जिसके चलते नेता हर पुलिस वाले को एक नाप से तौलते हैं।’
पुलिस कांस्टेबल के दृढ़ निश्चय के बाद मंत्री के पुत्र व उसके दो दोस्तों की गिरफ्तारी भी हुई और जमानत भी तुरत-फुरत मिल गई। मंत्री की दलील थी कि उनका बेटा रात को अपने किसी कोरोना पीड़ित रिश्तेदार को देखने अस्पताल जा रहा था, महिला कांस्टेबल ने उसे जाने नहीं दिया और मुद्दे को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया। साथ ही बेटे के साथ अभद्रता का आरोप भी लगाया।
कुल मिलाकर सुनीता ने मंत्री व उसके दंभ से भरे पुत्र को ही सबक नहीं सिखाया बल्कि पुलिस कर्मियों को भी सीख दी कि यदि वे स्वाभिमान के साथ कायदे-कानूनों के बीच नौकरी करना चाहें तो उन्हें अपनी ताकत का अहसास होना चाहिए। देश के लोगों को अहसास कराया कि ईमानदारी से काम करना पुलिस के लिये कितना मुश्किल है। आम लोगों के लिए भी संदेश है कि ईमानदार कर्मियों की ड्यूटी में बाधा डालने वाले नेताओं को सबक सिखाया जाये। यही वजह है कि पूरे देश में इस घटना को लेकर सुनीता के पक्ष में जनसमर्थन उभरा। सोशल मीडिया पर उसके साहस की चर्चा होने लगी। दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालिवाल व डॉ. कुमार विश्वास जैसे लोगों ने गुजरात सरकार से सुनीता को न्याय दिलवाने की मांग की।

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