Tuesday 27 March 2018

अंटार्कटिका में चमकी मंगला की मणि


असम्भव को सम्भव कर दिखाने वाली जांबाज
खुद को हमेशा नई चुनौतियां देने में विश्वास रखने वाली मंगला मणि ने आखिर साबित किया कि बढ़ती उम्र महज एक नम्बर मात्र है। मन में यदि संकल्प हो तो कुछ कर गुजरने की कोई उम्र नहीं होती। मंगला ने यह भी साबित किया कि भले ही पुरुष शारीरिक रचना के हिसाब से ताकतवर हों लेकिन स्त्री मानसिक रूप से ज्यादा सशक्त होती है। जरूरत इस बात की है कि हम अपनी क्षमताओं पर विश्वास करें। साथ ही लीक तोड़ती कोशिशें अनवरत जारी रखी जाएं। इन्हीं इरादों के साथ मंगला एक साल से अधिक अंटार्कटिका में रहने वाली पहली भारतीय महिला वैज्ञानिक बनीं।
अंटार्कटिका जैसे बेहद ठंडे दुर्गम स्‍थान पर इसरो की महिला वैज्ञानिक मंगला मणि ने एक साल से अधिक समय बिताकर नया रिकॉर्ड कायम किया है। ऐसा करने वाली वह पहली भारतीय महिला बन गई हैं। उन्‍होंने इस बर्फीले महाद्वीप पर पूरे 403 दिन बिताए। मंगला नवम्बर 2016 में अपनी टीम के साथ अंटार्कटिका में मौजूद भारत के रिसर्च स्टेशन (भारती) गई थीं। वह 23 सदस्‍यों वाली इस शोध टीम की अकेली महिला सदस्‍य थीं। उनके हौसले और हिम्‍मत के कारण उन्‍हें नारी शक्ति का प्रत्यक्ष रूप कहा जा सकता है।
जीवन में अगर आप कुछ अलग करना चाहते हैं तो उम्र किसी की मोहताज नहीं होती। मंगला मणि इसरो में वैज्ञानिक हैं। मंगला पिछले साल दिसम्बर में अपने मिशन को पूरा करके वापस लौटी हैं। इस मिशन पर उनका कहना है कि अंटार्कटिका का ये मिशन काफी चुनौतीपूर्ण रहा। सबसे ज्यादा मुश्किलें वहां के मौसम को लेकर आईं। मंगला बताती हैं कि मुझे और मेरी टीम को रिसर्च सेण्टर से बाहर निकलने के दौरान काफी सावधानी बरतनी पड़ती थी। ठंड इतनी थी कि बाहर दो से तीन घंटे से ज्यादा नहीं रहा जा सकता था।
मंगला मणि अकेली ऐसी महिला वैज्ञानिक हैं जो अंटार्कटिका के मिशन पर गई थीं। वहां चीन और रूस के रिसर्च स्टेशन पर भी इस दौरान कोई महिला वैज्ञानिक नहीं थी। मंगला और उनकी टीम अंटार्कटिका में भारत के रिसर्च स्टेशन पर ध्रुवीय कक्षा में घूम रहे सेटेलाइट्स के डेटा लेने के लिए गई थीं। अंटार्कटिका मिशन में जाने से पहले उनकी शारिरिक और मानसिक जांच हुई थी, जिसमें वह पूरी तरह से पास हुईं। कल्पना से भी शरीर में सिहरन होती है कि रक्त जमाती सर्दी वाले बियावान बर्फीले रेगिस्तान में कोई महिला 403 दिन तक रह सकती है। उससे भी बढ़कर यह कि राष्ट्रसेवा के मिशन में अपना सर्वश्रेष्ठ देना। कल्पना करना सहज है कि -90 डिग्री तापमान में जहां जीने के अनुकूल परिस्थितियां ही न हों वहां अनुसंधान के कार्य को सिरे चढ़ाया जाए। वह भी उम्रदराज महिला इस मुहिम को सिरे चढ़ाए तो उनके योगदान को राष्ट्र नमन करेगा ही। निश्चित रूप से यह एक महिला के बुलंद हौसलों की ही जीत है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान यानी इसरो की वैज्ञानिक मंगला मणि ने अपने जांबाज हौसले से वाकई असम्भव को सम्भव कर दिखाया है। दरअसल, अंटार्कटिका में तमाम विषम परिस्थितियों में मानवीय जीवन दुष्कर है। वहां का मौसम बेहद सर्द और कठोर है। ऐसे में काम करने में बेहद सतर्कता बरतनी पड़ती है। स्थितियां इतनी जटिल होती हैं कि काम करते वक्त टीम के सदस्य दो-तीन घंटे से अधिक बाहर नहीं रह सकते। इसके तुरंत बाद जीने के लिए गर्मी लेने के लिए वापस स्टेशन लौटना पड़ता है। यदि ऐसा न किया जाए तो जीवन खतरे में पड़ सकता है। मंगला मणि के लिए यह अभियान एक बड़ी चुनौती थी। उन्होंने अपने जीवन में कभी बर्फबारी होते हुए भी नहीं देखी थी। फिर 56 वर्ष की उम्र में इस कष्टदायक अभियान का हिस्सा बनना अलग किस्म की चुनौती थी। कहते हैं न कि हमेशा पक्के इरादों और हौसलों की ही जीत होती है। इस बार भी ऐसा ही हुआ।
मानवीय जीवन के लिए प्रतिकूल हालातों में रहकर काम करने की योग्यता हासिल करने के लिए मंगला को तमाम परीक्षाओं से गुजरना पड़ा। मिशन की अकेली महिला को शारीरिक क्षमताओं के परीक्षण के दौर से रूबरू होना पड़ा। उन्हें दिल्ली स्थित एम्स में कई मेडिकल जांचों की कसौटी पर खरा उतरना पड़ा। इसके उपरांत बर्फीले इलाकों में जीवन जीने के अनुभव भी हासिल करने थे। मंगला की शारीरिक क्षमताओं को जांचने-परखने के लिए उन्हें उत्तराखंड के बर्फीले इलाके ऑली और बद्रीनाथ ले जाया गया। जहां नौ हजार फीट की ऊंचाई पर भारी-भरकम इक्विपमेंट्स के साथ ट्रैकिंग भी करनी पड़ी। इस तरह मंगला और इसरो की टीम के सदस्यों को अंटार्कटिका मिशन के लिए तैयार किया गया।
दरअसल, अंटार्कटिका में स्थित भारती रिसर्च स्टेशन भारत का तीसरा अनुसंधान केंद्र है जो इसके पूर्वी तट पर अवस्थित है। यह वर्तमान में सक्रिय दो रिसर्च स्टेशनों में से एक है। इसके अलावा मैत्री नामक शोध स्टेशन वहां पहले से काम कर रहा है। एक अन्य रिसर्च फैसिलिटी को सप्लाई बेस के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत दुनिया के उन नौ देशों में शामिल है, जिनके वहां एक से अधिक शोध केंद्र हैं। भारती शोध केंद्र में समुद्री शोध और अंटार्कटिका के भूभाग पर शोध किया जाता है।
दरअसल, अंटार्कटिका गई इसरो की टीम रिसर्च स्टेशन पर ध्रुवीय कक्ष में परिभ्रमण कर रहे भारतीय उपग्रहों से विशिष्ट परिस्थितियों में हासिल डेटा जुटाती है। फिर मंगला की टीम इस अर्जित डेटा को कम्युनिकेशन सेटेलाइट लिंक के जरिए हैदराबाद स्थित केंद्र को भेज देती है। इस महत्वपूर्ण अभियान में निभाई गई भूमिका के लिए मंगला की दो संसदीय समितियों ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की है।

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