Tuesday 2 April 2019

राजनीतिक पिच पर खिलाड़ियों का हो-हल्ला


खेलहित के लिए खिलाड़ियों का राजनीति में आना जरूरी
                              श्रीप्रकाश शुक्ला
इस समय देश क्रिकेट और राजनीति के आगोश में है। हर गली-चौराहे पर या तो आईपीएल में खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर चर्चा हो रही है या फिर देश के भावी राजनीतिक परिदृश्य की सम्भावनाओं पर लोग अपने-अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं। एक समय था जब खिलाड़ियों का राजनीति से कोई वास्ता नहीं होता था। आज ऐसी बात नहीं है। हर राजनीतिक दल खिलाड़ियों की लोकप्रियता को भुनाने का प्रयास करने लगा है। भारत रत्न सचिन तेंदुलकर से बड़ा कोई और उदाहरण नहीं हो सकता। आज खिलाड़ियों की लोकप्रियता जहां जनता जनार्दन को मतदान के लिए प्रेरित करने के काम आ रही है वहीं कई खिलाड़ी राजनीतिक पिच पर भी जबर्दस्त हो-हल्ला मचा रहे हैं। राज्यवर्धन सिंह राठौड़, कीर्ति आजाद, पद्मश्री कृष्णा पूनिया, लक्ष्मीरतन शुक्ला, चेतन चौहान, मोहम्मद अजहरुद्दीन, ज्योतिर्मय सिकदर, नवजोत सिंह सिद्धू जैसे खिलाड़ी गाहे-बगाहे ही सही प्रतिद्वन्द्वी दलों की पेशानियों पर बल ला चुके हैं।
क्रिकेट की लोकप्रियता को चुनावों में भुनाने के लिए राजनीतिक दल हमेशा तत्पर रहते हैं और काफी हद तक सफल भी रहे हैं। क्रिकेट खिलाड़ियों को भी राजनीतिक पिच काफी मुफीद नजर आई है। भारत में क्रिकेट इबादत और क्रिकेटर को भगवान का दर्जा प्राप्त है, यही वजह है कि लोग अपना जरूरी काम छोड़कर भी क्रिकेट देखते हैं और खिलाड़ियों की बलैयां लेते हैं। देखा जाए भारतीय राजनीतिक पिच पर कई खिलाड़ियों ने हाथ आजमाए लेकिन बहुत कम को ही सफलता हाथ लगी है। देश की प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस ने कई क्रिकेटरों को राजनीति में एक अलग पहचान दिलाई है। इस कड़ी में सबसे पहला नाम भारतीय क्रिकेट जगत की चर्चित हस्ती मंसूर अली खान पटौदी का आता है। क्रिकेट से संन्यास के बाद पटौदी ने राजनीति में प्रवेश किया लेकिन भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया। नवाब पटौदी ने 1999 में कांग्रेस के टिकट से भोपाल से चुनाव लड़ा था लेकिन उनकी हार हुई इससे पहले भी वह गुड़गांव में विशाल हरियाणा पार्टी के टिकट पर चुनाव हारे थे।
मध्य प्रदेश की जहां तक बात है, यहां की राजनीतिक पिच पर पूर्व हॉकी कप्तान असलम शेर खान भी हाथ आजमा चुके हैं। असलम शेर खान 1984 और 1991 में कांग्रेस से सांसद रहे उसके बाद मध्य प्रदेश से कभी कोई बड़ा नामवर खिलाड़ी तो नहीं उतरा लेकिन यशोधरा राजे सिंधिया, मुकेश नायक, राजेन्द्र सिंह जैसे औसत दर्जे के खिलाड़ी राजनीतिज्ञों ने संसद और विधान सभा में खेल-खिलाड़ियों के हित की बात दबंगता से रखी है। यशोधरा राजे सिंधिया मध्य प्रदेश की सबसे अधिक समय तक खेल मंत्री रहीं और इन्होंने अपने कामकाज से एक नजीर पेश की है। मुकेश नायक भी मध्य प्रदेश के खेल मंत्री रह चुके हैं। 
प्रायः लोग कहते हैं कि खेलों में राजनीति नहीं होनी चाहिए लेकिन आज खिलाड़ियों को राजनीतिक पिच सबसे ज्यादा रास आ रही है, यही वजह है कि आज हर पल राजनीतिक दल नामवर खिलाड़ियों को लपकने को तैयार रहता है। राजनीति में खिलाड़ियों की लोकप्रियता को भुनाने की होड़ खेलप्रेमियों की दिलचस्पी का भी आज एक बहुत बड़ा कारण बन चुकी है। केन्द्रीय खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़, उत्तर प्रदेश के खेल मंत्री चेतन चौहान जहां आज भारतीय जनता पार्टी की अलम्बरदारी कर रहे हैं वहीं नवजोत सिंह सिद्धू, कृष्णा पूनिया जैसे खिलाड़ी कांग्रेस पार्टी के खेवनहार हैं। खिलाड़ियों के राजनीति में आने को लेकर ओलम्पिक रजत पदक विजेता, केंद्रीय खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ तथा राजस्थान से कांग्रेस विधायक कृष्णा पूनिया मानते हैं कि खिलाड़ियों के राजनीति में आने से खेलों व खिलाड़ियों का भला होगा क्योंकि संसद और विधान सभा में खिलाड़ियों की असल पीड़ा एक खिलाड़ी ही बयां कर सकता है। यह सच है कि एक खिलाड़ी में देश के लिए कुछ करने की ललक होती है। वह न केवल अनुशासित होता है बल्कि उसमें लाग-लपेट जैसी बातें नहीं होतीं। एक खिलाड़ी मैदान में जहां अपने प्रदर्शन से मादरेवतन का मान बढ़ाता है वहीं राजनीतिक वीथिका में भी उसके मानस में खेलभावना का भाव हमेशा जिन्दा रहता है।
सोलहवीं लोकसभा में राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के अलावा पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद, पूर्व फुटबॉल कप्तान प्रसून बनर्जी (तृणमूल कांग्रेस) और राष्ट्रीय स्तर के निशानेबाज के. नारायण सिंह देव (बीजद) सदस्य थे। डबल ट्रैप निशानेबाज राज्यवर्धन सिंह राठौड़ 2017 में देश के पहले ऐसे खेलमंत्री बने, जो ओलम्पिक पदक विजेता होने के साथ ही आला दर्जे के शूटर रहे हें। राठौड़ सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भी हैं। राज्यवर्धन सिंह राठौड़ का बतौर खेल मंत्री कार्यकाल सराहनीय है। उन्होंने खिलाड़ी हित के कई अच्छे निर्णय लिए हैं। पंद्रहवीं लोकसभा में कीर्ति आजाद और के. नारायण सिंह देव के अलावा पूर्व क्रिकेटर अजहरुद्दीन (कांग्रेस) और नवजोत सिंह सिद्धू (भाजपा) भी सदसय थे। मोहम्मद अजहरुद्दीन 2014 में भी मुरादाबाद से चुनाव लड़े लेकिन हार गए थे। दूसरी ओर सिद्धू 2014 में लोकसभा का टिकट नहीं मिलने के बाद राज्यसभा के सदस्य थे लेकिन अब वह भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आ गए हैं। सिद्धू की छवि एक कद्दावर नेता के रूप में जानी-पहचानी जाती है। बेबाक नवजोत सिंह सिद्धू के कारण ही पंजाब विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को मुंह की खानी पड़ी थी।
एक अन्य क्रिकेटर भारत के सलामी बल्लेबाज रहे चेतन चौहान ने भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर 1991 और 1998 में अमरोहा से लोकसभा चुनाव जीता जबकि 1996, 1999,  2004 व 2009 में उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा। चेतन चौहान लगातार मिली पराजयों के बाद भी चुनावी पिच पर डटे रहे और आज वह उत्तर प्रदेश के खेल मंत्री हैं। पश्चिम बंगाल के क्रिकेटर लक्ष्मीरतन शुक्ला भी कुछ समय के लिए खेल मंत्री पद पर रह चुके हैं। पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद कैफ 2009 में कांग्रेस की टिकट पर उत्तर प्रदेश के फूलपुर से चुनाव लड़े लेकिन हार गए। क्रिकेटर एस. श्रीसंथ भी राजनीतिक पिच पर भाग्य आजमा चुके हैं वह भाजपा की टिकट से तिरुवनंतपुरम से विधान सभा चुनाव लड़े लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। पूर्व टेस्ट क्रिकेट और मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के बाल सखा विनोद काम्बली भी राजनीति के क्षेत्र में अपना भाग्य आजमा चुके हैं। साल 2009 में काम्बली ने मुंबई की विक्रोली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन वह चुनाव हार गए थे। पूर्व क्रिकेटर मनोज प्रभाकर को भी राजनीतिक पिच रास नहीं आई।
क्रिकेटरों के अलावा अन्य खेलों के खिलाड़ियों ने भी राजनीति में दस्तक दी। 2004 में एथलीट ज्योतिर्मय सिकदर पश्चिम बंगाल की कृष्णानगर सीट से चुनाव जीतीं थीं। ज्योतिर्मय सिकदर और ममता बनर्जी के बीच याराना लम्बा नहीं चला लिहाजा उन्हें राजनीति से दूर होना पड़ा। पूर्व हॉकी कप्तान असलम शेर खान ने भी राजनीतिक पिच पर हाथ आजमाए और 1984 तथा 1991 में लोकसभा सदस्य बने लेकिन उसके बाद उन्हें चार चुनावों में पराजय का हलाहल पीना पड़ा। पूर्व हॉकी कप्तान दिलीप टिर्की ओड़िशा से राज्यसभा सदस्य रहे तो छह बार की विश्व चैम्पियन एम.सी. मैरीकाम और भारत रत्न सचिन तेंदुलकर आज भी राज्यसभा सदस्य हैं। मशहूर फुटबालर बाईचुंग भूटिया 2014 में तृणमूल कांगेस के उम्मीदवार थे, लेकिन वह चुनाव हार गए। पूर्व राष्ट्रीय तैराकी चैम्पियन और अभिनेत्री नफीसा अली 2004 में कांग्रेस तथा 2009 में सपा की उम्मीदवार रहीं, लेकिन दोनों ही बार उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। क्रिकेटर रवींद्र जड़ेजा की पत्नी रीवा सोलंकी, क्रिकेटर गौतम गम्भीर भाजपा की सदस्यता ले चुके हैं। रीवा सोलंकी विवादास्पद कर्णी सेना की महिला शाखा की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। इस बार खिलाड़ियों पर लोगों को मतदान के लिए जागरूक करने की जिम्मेदारी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सचिन तेंदुलकर, विराट कोहली, महेंद्र सिंह धोनी, रोहित शर्मा, वीरेंद्र सहवाग, बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट जैसे खिलाड़ियों से जनता जनार्दन को मतदान के लिए प्रेरित करने की अपील की है। 23 मई अभी दूर है ऐसे में कुछ और खिलाड़ियों की महत्वाकांक्षा राजनीतिक पिच पर परवान चढ़ सकती है।  


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