Wednesday 25 July 2018

भारतीय उम्मीदों की किरण नीरज और हिमा दास




एशियाड ही नहीं ओलम्पिक के भी पदक दावेदार
 श्रीप्रकाश शुक्ला                                                   
इंडोनेशिया में होने वाले एशियाई खेलों की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। भारतीय उम्मीदों का दिया भी अनायास ही सही टिमटिमाने लगा है। खिलाड़ी और खेल महासंघ भारतीय खेलप्रेमियों को नायाब प्रदर्शन की सौगात देने को जहां प्रतिबद्ध हैं वहीं पिछले कुछ दिनों में हमारे दो खिलाड़ियों ने विश्व एथलेटिक मंच पर अपने करिश्माई प्रदर्शन से सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। यह दो खिलाड़ी हैं असम की नई उड़नपरी हिमा दास और पानीपत (हरियाणा) का सदाबहार भालाफेंक खिलाड़ी नीरज चोपड़ा। यह दोनों एथलीट न केवल प्रतिभाशाली हैं बल्कि भारतीय उम्मीदों के चमकते सितारे भी हैं। एथलेटिक्स की बात करें तो भारत ओलम्पिक खेलों में 100 साल से भी अधिक समय से सहभागिता कर रहा है लेकिन आज तक इस विधा में उसे कोई पदक नहीं मिला है। हिमा और नीरज ने जूनियर स्तर पर जो कमाल दिखाया है, उससे लगने लगा है कि देर-सबेर ये दोनों जांबाज एथलेटिक्स की रीती झोली में पदकों की खुशफहमी डाल सकते हैं। ओलम्पिक खेल अभी दूर हैं ऐसे में इन दोनों ही खिलाड़ी को इंडोनेशिया में होने जा रहे एशियाई खेलों में पदक का प्रमुख दावेदार माना जा सकता है।   
देशभर में धींग एक्सप्रेस के नाम से मशहूर हो चुकी हिमा दास ने फिनलैंड के टेम्पेरे में वर्ल्ड अंडर-20 एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में 400 मीटर दौड़ में जो स्वर्णिम सफलता हासिल की है, उसे संयोग नहीं कहा जा सकता। इसके लिए इस भारतीय बेटी ने अथक परिश्रम किया है। फिनलैंड में हिमा की हिमालयीन सफलता के बाद राष्ट्रगान की अनुगूंज के बीच उसकी आंखों से बहे खुशी के आंसू उद्दात राष्ट्रप्रेम का सूचक है। हिमा की इस सफलता के निहितार्थ भी हैं। जिस देश में खेल-संस्कृति का नितांत अभाव हो वहां की बेटी का दुनिया जीतना छोटी बात नहीं हो सकती। अभावों की तपिश में तपकर कुंदन बनी हिमा दास हों या नीरज चोपड़ा, इनकी कामयाबी इसी बात का संकेत है कि हमारे देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। हिमा और नीरज की चर्चा देश-दुनिया में होना सुकून की बात है। खुशी के इस अवसर पर हर भारतीय को इन खिलाड़ियों के श्रमसाध्य प्रयासों और उन विषम परिस्थितियों को भी याद करना चाहिए, जिससे गुजरकर इन दोनों ने यह मुकाम हासिल किया है। हिमा और नीरज महिला और पुरुष वर्ग के एथलीटों में विश्व स्पर्धा में सुनहरी सफलता हासिल करने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी हैं। हिमा और नीरज से पहले भारतीय खेलप्रेमियों को चौथे-पांचवें स्थान में पहुंचे खिलाड़ियों का ही गुणगान करने का सौभाग्य मिला था।
धान के खेतों में दौड़ लगाकर फिनलैंड तक सुनहरा सफर हासिल करने वाली हिमा की कामयाबी सही मायने में किसी बॉयोपिक फिल्म सरीखी है। एक संयुक्त किसान परिवार में जन्मी हिमा की सफलता मुश्किलों के रास्तों से होकर गुजरती है। एक लड़की होकर लड़कों के बीच खेलने वाली यह जांबाज कम उम्र में ही सब कुछ देख चुकी है। भारत में खेलों का रास्ता काफी कंटीला है, बेटियों के लिए तो और भी अधिक। असम के नौगांव जिले के कांदुलीमारी गांव में जन्मी हिमा में बचपन से ही खिलाड़ी बनने के गुण थे। पिता रंजीत दास ने इन गुणों को समझा और उसे प्रोत्साहन भी दिया। हिमा धान के खेतों में काम करती और मौका मिलने पर खेलने भी जाती। मगर दिक्कत यह थी एक लड़की किसके साथ खेले, कौन-सा खेल खेले। वहां तो कोई स्टेडियम भी नहीं था और न ही दौड़ने का ट्रैक। वह धान के खेतों में दौड़ती थी। मगर उसके गांव का इलाका ऐसा था कि बरसात के दो-तीन महीने खेतों में पानी भर जाता था। फिर वह कहां दौड़े? कभी-कभी तो वह सड़क पर दौड़ती कारों के पीछे ही दौड़ पड़ती थी। कई मौके ऐसे आए कि उसने तेज गति की कार तक को पीछे छोड़ दिया। हिमा को न कोई सिखाने वाला था और न उसके साथ खेलने वाला।
आखिरकार हिमा ने सोचा क्यों न फुटबाल खेली जाए। मगर उसे लड़के खेलाने को तैयार नहीं थे। महिला फुटबालरों की कोई टीम नहीं थी। एक बार उसकी फुटबाल टीम के लड़कों के साथ खूब लड़ाई भी हुई। लड़के कहते- इस लड़की को नहीं खेलाएंगे। मगर हिमा के हृदय का खिलाड़ी हमेशा उफान मारता रहता। उसने जब फुटबाल टीम में खेलना शुरू किया तो दनादन गोल दागे। फिर तो वह फुटबाल टीम का हिस्सा ही बन गई। वह आसपास के जिलों में फुटबाल खेलने जाती। जीतकर आती तो जो दो-चार सौ रुपये मिलते, मां के हाथ पर रख देती। हिमा की मां जोनाली दास इस बात को बड़े गर्व से बताते हुए कहती हैं कि जब उसे पैसे की जरूरत होती तो वह सिर्फ पिता से मांगती। उसके घर वालों को मलाल इस बात का है कि जब उसे फिनलैंड में मेडल दिया गया तो लाइट न होने से उस कार्यक्रम को नहीं देख पाये।
दरअसल, हिमा के जीवन में टर्निंग प्वाइंट तब आया जब वह कोच निपुण दास की नजर में आई। जनवरी 2017 में हिमा गुवाहाटी में एक प्रशिक्षण शिविर में हिस्सा लेने आई थी। निपुण दास ने ट्रैक पर दौड़ते हुए हिमा को देखा तो उन्हें लगा कि यह तो लम्बी रेस की खिलाड़ी है। इसके बाद निपुण दास ने उसे ट्रैक पर निपुण बनाने का संकल्प लिया। वे उसके गांव पहुंचे और माता-पिता से कहा कि उसे बेहतर ट्रेनिंग के लिये गुवाहाटी भेजें। माता-पिता बेटी को आगे बढ़ते तो देखना चाहते थे मगर उनकी ऐसी स्थिति नहीं थी कि वे हिमा का गुवाहाटी में रहने का खर्चा उठा सकें। निपुण दास ने कहा-आप इसे बाहर भेजिए, खर्चा मैं उठाऊंगा। कहते हैं कि एक जौहरी ही हीरे की पहचान कर सकता है, निपुण दास की निपुणता और हिमा की मेहनत से ही भारत को एक नई उड़नपरी मिल सकी।
फिनलैंड में सम्पन्न हुई अंतरराष्ट्रीय ट्रैक एण्ड फील्ड चैम्पियनशिप की चार सौ मीटर दौड़ के मुकाबले में 35 सेकेण्ड तक हिमा शीर्ष तीन धावकों में भी नहीं थी। आखिरी 100 मीटर में चौथे स्थान पर चल रही हिमा की दौड़ को देखकर कोच निपुणदास ने अंदाजा लगा लिया कि वह आज मेडल लेकर लौटेगी। उन्हें पता था कि वह पहले तीन सौ मीटर में धीमी रहती है और फिर आखिरी सौ मीटर में पूरी जान लगा देती है। दरअसल, अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण के अभाव में हिमा ट्रैक के कर्व पर अच्छी तरह नहीं दौड़ पाती, मगर जब आखिरी 100 मीटर में ट्रैक सीधा हो जाता है तो पिछली कसर पूरी करते हुए सबसे आगे निकल जाती है। हिमा आज लाखों अभावग्रस्त उदीयमान खिलाड़ियों की प्रेरणापुंज बन गई है। उम्मीद करनी चाहिए कि हिमा पहले इंडोनेशिया में होने वाले एशियाई खेलों, फिर टोक्यो ओलम्पिक में भारत के लिये कुछ खास जरूर करेगी।
भारत के स्टार भाला फेंक खिलाड़ी नीरज चोपड़ा की बात करें तो इस 20 वर्षीय खिलाड़ी ने भी कम उम्र में ही अनेकों झंझावातों का सामना किया है। सोतेविले एथलेटिक्स मीट (फ्रांस) में नीरज चोपड़ा ने 85.17 मीटर की दूरी तक भाला फेंक कर स्वर्णिम सफलता हासिल की। इस स्पर्धा में चोपड़ा ने 2012 लंदन ओलम्पिक के स्वर्ण पदक विजेता केशोर्न वालकोट को भी पीछे छोड़ा। त्रिनिदाद एण्ड टोबैगो के वालकोट 78.26 मीटर के प्रयास के साथ पांचवें स्थान पर रहे। एंड्रियन मारडेयर ने 81.48 मीटर के साथ रजत तो लिथुआनिया के एडिस मातुसेविसियस ने 79.31 मीटर की दूरी के साथ कांस्य पदक अपने नाम किया। नीरज चोपड़ा की जहां तक बात है पानीपत के 20 साल के इस जांबाज ने 2016 में उस समय सुर्खियां बटोरी थीं जब उन्होंने विश्व जूनियर चैम्पियनशिप में 86.48 मीटर के विश्व रिकॉर्ड के साथ स्वर्ण पदक जीता था। नीरज ने इस साल गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीता और फिर दोहा डाइमंड लीग में चौथे स्थान पर रहने के बावजूद 87.43 मीटर के प्रयास के साथ नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया। हिमा दास और नीरज चोपड़ा का अगला बड़ा इम्तिहान इंडोनेशिया में होने वाले एशियन गेम्स हैं, जहां इन दोनों को गोल्ड मेडल का प्रमुख दावेदार माना जा रहा है।



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