रौ में हैं हमारे निशानेबाज, शटलर, पहलवान,
मुक्केबाज और एथलीट
श्रीप्रकाश
शुक्ला
अठारहवें एशियाई खेलों की दुंदुभी बज चुकी है। हर
खिलाड़ी अपना और अपने देश का गौरव बढ़ाने को कौशल निखार रहा है। 18 अगस्त से दो
सितम्बर तक इंडोनेशिया में होने वाले एशियाई खेलों को लेकर भारतीय ओलम्पिक संघ भी
खिलाड़ियों की चयन प्रक्रिया को अंतिम रूप देने की जद्दोजहद में जुटा हुआ है। हर
बड़ी खेल प्रतियोगिता से पूर्व भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन को लेकर
खेलप्रेमियों में उत्सुकता पैदा हो जाती है। खेलों से जुड़े महासंघ आशा-अपेक्षा के
भंवरजाल में फंसे यह कहने की स्थिति में नहीं होते कि भारत किस खेल में कितने पदक
जीतेगा। खैर, इंडोनेशिया में होने जा रहे एशियाई खेलों के 18वें संस्करण में पदकों
की बात करें तो कई खिलाड़ियों के चोटिल होने के बावजूद भारत काफी अच्छी स्थिति में
नजर आ रहा है। भारत के पास कई अच्छे खिलाड़ी हैं जोकि मादरेवतन का मान बढ़ा सकते
हैं। हमारे निशानेबाज, शटलर, एथलीट, मुक्केबाज और पहलवान जिस रौ में दिख रहे हैं,
उससे उम्मीद है कि इस बार भारत का प्रदर्शन पिछले एशियाई खेलों से बेहतर होगा।
एशियाई खेलों का 18वां संस्करण शुरू होने में लगभग
दो माह का समय बचा है। देश के खेलप्रेमियों को यह यक्ष-प्रश्न सता रहा है कि क्या
हम चार वर्ष पहले प्राप्त पदकों की संख्या में सुधार कर पाएंगे। भारतीय ओलम्पिक
संघ ने बेशक अभी तक पदकों का दावा नहीं किया हो पर मुझे भरोसा है कि इस बार भारतीय
खिलाड़ी पिछले 17 एशियाई खेलों से बेहतर प्रदर्शन करेंगे। देखा जाए तो खेलों की
दुनिया में साल दर साल जहां अधिकांश देशों का प्रदर्शन बेहतर हो रहा है वहीं
भारतीय खिलाड़ियों का हुनर भी निखरा है। 1990 के पेइचिंग एशियाड में हम जहां 11वें
स्थान पर थे वहीं उसके बाद भारत शीर्ष दस देशों में शामिल रहा। पिछली बार हम आठवें
नम्बर पर थे। हमारा पड़ोसी चीन एशिया ही नहीं, विश्व की खेल महाशक्ति है। वह ओलम्पिक
की पदक तालिका में अव्वल आने की होड़ करता है। अमेरिका को कड़ी चुनौती देता है
लिहाजा उससे तुलना करना बेमानी है। भारत ही क्या एशियाई खेलों में तो कोई देश उसके
आसपास भी नहीं फटक पाता।
इंडोनेशिया जाने से पूर्व भारतीय खिलाड़ियों की
परख करें तो कई खिलाड़ियों का चोटिल होना चिन्ता की बात तो है लेकिन उम्मीद की
जानी चाहिए कि एशियाड के 18वें संस्करण में हमारे कई गुमनाम खिलाड़ी इस बार करिश्मा
करते दिखेंगे। इस बार भारतीय दल 29 प्रतियोगिताओं में शिरकत करेगा लेकिन उम्मीद
घूम-फिर कर निशानेबाजी, कुश्ती, एथलेटिक्स, मुक्केबाजी, बैडमिंटन और तीरंदाजी पर
ही सिमट जाती है। टीम मुकाबलों में कबड्डी का स्वर्ण लगातार आठवीं बार जीतने की सम्भावना
प्रबल है तो हॉकी और वॉलीबाल में भी भारत से तमगे की उम्मीद की जानी चाहिए। बाकी
खेलों में जो भी हासिल होगा उसे लॉटरी ही कहा जाएगा। भारत में खेलों के संचालन की
जिम्मेदारी भारतीय ओलम्पिक संघ पर है और उसका कारोबार कैसे चलता है, यह बात अब
किसी से छिपी नहीं है। देखा जाए तो अन्य खेल संगठनों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं
है। खेल संघों की कारगुजारियों का नतीजा खिलाड़ियों को भुगतना पड़ता है और
अंतरराष्ट्रीय खेल मंचों पर भारत की किरकिरी होती है।
हमारे देश के अधिकांश खेल संगठनों पर नेताओं और
नौकरशाहों का कब्जा है। अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताएं उनके सैर-सपाटे का जरिया
हैं। खिलाड़ियों को अंतिम क्षण तक पता नहीं होता कि उनका चयन होगा भी या नहीं जबकि
पदाधिकारियों का दौरा काफी पहले से तय हो जाता है। देखा जाए तो हर बड़ी खेल
प्रतियोगिता के समय भारत में अनुभव अर्जित करने की आड़ में मौज-मस्ती का विचित्र
खेल चलता है। ओलम्पिक, एशियाड, राष्ट्रमंडल खेलों या किसी भी अन्य अंतरराष्ट्रीय
प्रतियोगिता में एथलीट भेजने का रिश्ता सिर्फ खर्चे से जुड़ा नहीं होता। बाहर जाने
वाली हर टीम और खिलाड़ी के साथ राष्ट्र की प्रतिष्ठा भी जुड़ी होती है। एक भारी-भरकम
टीम जब विदेश से खाली हाथ लौटती है, तब निश्चय ही देश के सम्मान को ठेस पहुंचती
है।
खैर, इंडोनेशिया में 16 दिनों तक होने वाले
एशियाड के 18वें संस्करण में 45 देशों के लगभग 10 हजार एथलीट अपने पौरुष का
इम्तिहान देंगे। भारत भी इन खेलों में अपना अब तक का सबसे बड़ा दल भेजने की तैयारी
में है। हर बार की तरह इस बार भी भारत अपने शीर्ष खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर ही निर्भर
है। कोई भी खेल संघ ऐसे अवसर पर नए खिलाड़ियों पर जोखिम नहीं लेना चाहता। कई खेलों
में स्थिति तो ऐसी है कि कोई बड़ा खिलाड़ी चोटिल हो जाए तो उसकी जगह लेने के लिए हमारे
पास दूसरा खिलाड़ी नहीं है। इसकी मुख्य वजह खिलाड़ियों का अनुभवहीन होना माना जा
सकता है। देखा जाए तो पिछले एक दशक में कई राष्ट्रीय कीर्तिमान बने हैं लेकिन
अंतरराष्ट्रीय मानदंडों पर उनकी अहमियत दोयमदर्जे की ही नजर आई है। पहले यह बात चिन्ता
का विषय नहीं थी लेकिन खेलों में भारत की सुधरती स्थिति को देखते हुए अब इस ओर ध्यान
दिया जाने लगा है। खेलों में हमारी सबसे कमजोर कड़ी तैराकी और एथलेटिक्स है,
जिनमें सर्वाधिक पदक दांव पर होते हैं। एशियाई स्तर पर हमारे एथलीट कुछ पदक जीतकर
जरूर देश का नाम रोशन करते हैं लेकिन तैराकी में प्रायः हम रीते हाथ ही रहते हैं।
एशियाई खेलों का जनक भारत कभी भी इन खेलों में
शीर्ष पर नहीं रहा है। एशियाई खेलों के आगाज की जहां तक बात है पहले एशियाई खेल चार से 11
मार्च 1951 के बीच नई दिल्ली में हुए थे। ये खेल
पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 1950 में ही होने थे मगर तैयारियों में देरी के चलते इन्हें 1951 तक के लिए टाल दिया गया था। एशियाई खेलों से
पहले इन खेलों को फार ईस्टर्न गेम्स के नाम से जाना जाता था। पहली बार मनीला ने 1913 में इन खेलों का आयोजन किया था। भारत इन खेलों
का दो बार आयोजन कर चुका है। भारत में दूसरी
बार 1982 में इन खेलों का आयोजन हुआ था।
एशियाई खेलों में भारत के प्रदर्शन की बात करें
तो 17वें एशियाई खेलों में हमने 57 पदकों के साथ पदक तालिका में आठवां स्थान हासिल
किया था। भारत के 57 पदकों में 11 स्वर्ण, 10 रजत तथा 36 कांस्य पदक शामिल थे। चीन के ग्वांग्झू में 2010 में हुए सोलहवें एशियाई खेलों में भारत ने 65 पदक जीते थे जिसमें 14 स्वर्ण, 17 रजत और 34 कांस्य पदक शामिल थे। भारत बेशक हर क्षेत्र में विकास की नई पटकथा
लिख रहा हो लेकिन खेलों में हमारी स्थिति कतई पीठ ठोकने लायक नहीं है।
चीन, कोरिया, जापान के खेल सिस्टम से हम आज तक कुछ भी नहीं सीखे हैं।
पिछले एशियाई खेलों में पदकों की संख्या कम होने के बावजूद भारत ने कई ऐसे मुकाबले जीते थे, जो
इतिहास बन गए। बात चाहे पुरुष हॉकी के फाइनल में पाकिस्तान को रौंदकर सोना हासिल
करने की हो या फिर बॉक्सिंग में एमसी मैरीकॉम की स्वर्णिम सफलता की, भारत को पिछले
एशियाई खेलों में जश्न के कई मौके मिले थे। पिस्टल निशानेबाज जीतू राय और
फ्रीस्टाइल पहलवान योगेश्वर दत्त पिछले एशियाई खेलों के नायकों में शामिल रहे।
भारत ने एथलेटिक्स और कबड्डी में दो-दो स्वर्ण पदक जीते जबकि तीरंदाजी, मुक्केबाजी,
हाकी, निशानेबाजी, स्क्वैश, टेनिस और कुश्ती में एक-एक स्वर्ण पदक हमारे हाथ लगा
था। पिछले एशियाई खेलों
की ही तरह इस बार भी हमारे खिलाड़ी निशानेबाजी, कुश्ती, मुक्केबाजी, कबड्डी, हाकी,
भारोत्तोलन में स्वर्णिम सफलता के हकदार होंगे। देखा जाए तो 17वें एशियाई खेलों
में भारत
ग्लास्गो में राष्ट्रमंडल खेलों में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद गया था बावजूद
इसके राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों के स्तर में अंतर बना रहा। इस बार भी
हमारे खिलाड़ियों ने आस्ट्रेलिया में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में अच्छा प्रदर्शन
किया है लेकिन इंडोनेशिया में उस प्रदर्शन को दोहरा पाना हमारे खिलाड़ियों के लिए
आसान बात नहीं होगी।
भारत ने ग्वांग्झू में एथलेटिक्स में पांच
स्वर्ण, दो रजत और पांच कांस्य पदक जीते थे जबकि 17वें एशियाई खेलों में हमारे
एथलीट दो स्वर्ण, चार रजत और सात कांस्य पदक सहित 13 पदक ही जीत सके थे। पिछले
एशियाई खेलों में सीमा पूनिया ने महिला चक्का फेंक में स्वर्ण पदक जीता था तो
महिला चार गुणा 400 मीटर रिले टीम भी भारत के लिए स्वर्ण
जीतने में सफल रही। एथलेटिक्स की जहां तक बात है इस बार भाला फेंक खिलाड़ी नीरज
चोपड़ा, सीमा पूनिया, मंजू बाला, विकास गौड़ा, अरपिंदर सिंह, खुशबीर कौर, तेजस्विन
शंकर, रंजीत माहेश्वरी से हम पदक की उम्मीद कर सकते हैं। कबड्डी की जहां तक बात है
इस बार भी भारतीय पुरुष और महिला टीमों को शायद ही कोई स्वर्णिम सफलता हासिल करने
से रोक पाए। पिछले एशियाई खेलों में भारत ने वुशू में दो कांस्य पदक जीते थे तो
पुरुष तैराकी में संदीप सेजवाल ने 50 मीटर
ब्रेस्टस्ट्रोक में कांस्य पदक हासिल किया था। भारत ने महिला सेलिंग की 29-ईआर क्लास में पहली बार कांस्य पदक जीता था। इस
बार टेनिस से पदक की उम्मीदें कम हैं क्योंकि सानिया मिर्जा इन खेलों में शिरकत
नहीं कर रही हैं।
इंडोनेशिया में होने वाले अठारहवें एशियाई
खेलों में हमेशा की तरह इस बार भी हम अपने शूटरों से पदक की उम्मीद कर सकते हैं।
देखा जाए तो पिछले कुछ समय से हमारे शीर्ष निशानेबाज लक्ष्य से चूके हैं लेकिन
इंडोनेशिया में पंजाब की पिस्टल निशानेबाज हीना सिद्धू, मनु भाकर, जीतू राय, विजय
कुमार से हम स्वर्णिम सफलता की उम्मीद कर सकते हैं। भारतीय निशानेबाज विजय कुमार एशियाई
खेलों में अपने पदक का रंग बदलने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। 33 साल के विजय ने
लंदन ओलम्पिक में निशानेबाजी की 25 मीटर रैपिड फायर पिस्टल स्पर्धा में देश के लिए
रजत पदक जीता था। विजय 2006 से 2014 तक लगातार तीन बार एशियाई खेलों में पदक जीत
चुके हैं। उन्होंने 2006 में दोहा एशियाई खेलों में कांस्य, 2010 के ग्वांग्झो में
कांस्य और 2014 के इंचियोन खेलों में रजत पदक जीता था। विजय अब चौथी बार एशियाई
खेलों में स्वर्ण पदक जीतने की पुरजोर कोशिश करेंगे। मूलतः हिमाचल प्रदेश के रहने
वाले विजय तमाम उपलब्धियों के बावजूद पिछले करीब दो साल से बेरोजगार हैं और इसी के
चलते उन्होंने हिमाचल से हरियाणा पलायन किया है। वह पिछले दो साल से हरियाणा में
ही रह रहे हैं तथा यहीं पर एशियाई खेलों और ओलम्पिक की तैयारियां कर रहे हैं।
बैडमिंटन में हमारे शटलर पी.वी. सिंधू, साइना
नेहवाल, पारुपल्ली कश्यप, किदांबी श्रीकांत भारत को कुछ पदक दिला सकते हैं। मुक्केबाजी
में एम.सी. मैरीकॉम, विकास कृष्णन और अमित पदक के प्रबल दावेदार हैं। कुश्ती में दो
बार के ओलम्पिक पदकधारी सुशील कुमार, साक्षी मलिक, विनेश फोगाट, योगेश्वर दत्त के
दांव पदकों पर लग सकते हैं। भारोत्तोलन में विश्व चैम्पियन मीराबाई चानू तो
जिम्नास्ट दीपा कर्माकर से स्वर्ण पदक की उम्मीद है। आओ हम सब किसी किन्तु-परन्तु
से परे अपने खिलाड़ियों को एशियाड में सफलता की शुभकामनाएं दें।