पत्रकार श्रीप्रकाश शुक्ला
Tuesday, 9 June 2015
जाने क्यूं अब शर्म से चेहरे गुलाब नहीं होते,
जाने क्यूं अब शर्म से चेहरे गुलाब नहीं होते,
जाने क्यूं अब मस्त मौला मिजाज नहीं होते।
पहले बता दिया करते थे दिल की बातें,
जाने क्यूं अब चेहरे खुली किताब नहीं होते।।
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